श्रीमद्भगवत गीता श्लोक

May 6, 2025
श्रीमद्भगवत गीता श्लोक

अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।

इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः॥

परिचय

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अपने दिव्य स्वरूप और परम तत्व का वर्णन करते हैं। वे यह स्पष्ट करते हैं कि वे ही सम्पूर्ण जगत के मूल कारण हैं — उत्पत्ति, स्थिति और लय सब उन्हीं से है। वे ही सबके भीतर और सबके बाहर व्याप्त हैं। “बुधाः” यानी सच्चे ज्ञानी व्यक्ति इस गूढ़ सत्य को समझते हैं कि ईश्वर ही समस्त विश्व का आधार हैं, और इस समझ के साथ वे ईश्वर की भावपूर्ण भक्ति करते हैं — न केवल बुद्धि से, बल्कि पूर्ण श्रद्धा और प्रेम से। यह श्लोक गीता के भक्ति मार्ग की महत्ता को दर्शाता है, और यह बताता है कि ज्ञान और भक्ति दोनों का मेल ही सच्चा आध्यात्मिक मार्ग है।

हिंदी अर्थ

मैं ही सम्पूर्ण सृष्टि का उद्गम हूँ; मुझसे ही सब कुछ उत्पन्न होता है।

यह जानकर ज्ञानीजन मेरी प्रेमपूर्वक और श्रद्धापूर्वक भक्ति करते हैं।

मुख्य निष्कर्ष:

  • भगवान ही सम्पूर्ण सृष्टि के आदिस्रोत (उत्पत्ति का कारण) हैं।
  • सम्पूर्ण जगत उन्हीं से उत्पन्न और उन्हीं में स्थित है।
  • जो ज्ञानी होते हैं, वे इस दिव्य रहस्य को जानकर भावपूर्ण भक्ति करते हैं।

व्यावहारिक सन्देश:

जो व्यक्ति समझता है कि ईश्वर ही सबका मूल है, वह अहंकार त्यागकर भक्ति और विनम्रता के मार्ग पर चलता है।