माँ दुर्गाष्टमी व्रत: विधि, महत्व एवं अनुष्ठान

April 28, 2025
माँ दुर्गाष्टमी व्रत: विधि, महत्व एवं अनुष्ठान

सामान्य विवरण

दुर्गा अष्टमी व्रत चैत्र या शारदीय नवरात्रि के आठवें दिन रखा जाता है। यह व्रत मां दुर्गा की पूजा के लिए किया जाता है। इस दिन अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक माना जाता है, जब मां दुर्गा ने महिषासुर राक्षस का वध किया था। भक्त पूरे दिन का उपवास रखते हैं। कुछ लोग अन्न और पानी का पूरी तरह त्याग करते हैं, जबकि कुछ लोग फलाहार या हल्का भोजन करते हैं। शाम को पूजा के बाद व्रत खोला जाता है।

वर्ष 2025 के लिए निर्धारित शुभ मुहूर्त

साल 2025 में चैत्र नवरात्रि के दौरान दुर्गा अष्टमी व्रत शनिवार, 5 अप्रैल को रखा जाएगा। अष्टमी तिथि 4 अप्रैल को रात 8:12 बजे शुरू होगी और 5 अप्रैल को शाम 7:26 बजे समाप्त होगी।

महत्वपूर्ण पूजा जैसे कन्या पूजन का मुहूर्त 5 अप्रैल को अभिजीत मुहूर्त में रहेगा, जो दोपहर 11:59 बजे से 12:49 बजे तक होगा। साथ ही, संधि पूजा 5 अप्रैल को शाम 7:02 बजे शुरू होकर 7:50 बजे तक चलेगी।

पूजा विधि

माँ दुर्गा की विशेष पूजा और प्रार्थना की जाती है। इसमें मंत्रों का जाप (जैसे दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती), फूल चढ़ाना, धूप जलाना और आरती करना शामिल है। भक्त अक्सर पूरे दिन का कठोर व्रत रखते हैं। कुछ लोग बिना खाए-पिए रहते हैं, जबकि कुछ केवल फल या हल्का भोजन करते हैं।

नवरात्रि के समय, छोटी और अविवाहित लड़कियों को मां दुर्गा का रूप माना जाता है। उनके पैर धोए जाते हैं और उन्हें भोजन, कपड़े और उपहार दिए जाते हैं। कुछ जगहों पर इस दिन शस्त्रों की पूजा भी की जाती है, जो मां दुर्गा की शक्ति का प्रतीक है। इस दिन दुर्गा मंत्रों का जाप करना और दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती जैसे पवित्र ग्रंथों का पाठ करना शुभ माना जाता है।

दुर्गाष्टमी व्रत का विस्तृत विवरण

बुराई पर विजय

दुर्गा अष्टमी उस दिन का उत्सव है जब माँ दुर्गा ने अपने विभिन्न शक्तिशाली रूपों में राक्षस महिषासुर का वध किया था। इस विजय से देवताओं और मानवता को उसके अत्याचार से मुक्ति मिली और सृष्टि में संतुलन वापस आया।

दिव्य शक्ति का आह्वान

व्रत करने और पूजा विधियाँ करने से भक्त माता दुर्गा की हिम्मत, ताकत और सुरक्षा को अपनाते हैं, जिससे वे अपनी ज़िंदगी की चुनौतियों को पार कर सकें।