नरसिंह जयंती भगवान विष्णु के चौथे अवतार, भगवान नरसिंह के प्राकट्य का उत्सव है। यह वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन, भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने और अत्याचारी राक्षस हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए आधा-मानव और आधा-सिंह का रूप धारण किया था। नरसिंह जयंती बुराई पर अच्छाई की विजय और भगवान के अपने भक्तों की रक्षा करने के संकल्प का प्रतीक है।
सन् 2025 में नरसिंह जयंती रविवार, 11 मई को मनाई जाएगी। यह पावन अवसर चतुर्दशी तिथि के दौरान आता है, जो शनिवार, 10 मई को शाम 5:29 बजे शुरू होकर रविवार, 11 मई को रात 8:01 बजे समाप्त होगी। सबसे शुभ समय, यानी सायनकाल पूजा का मुहूर्त 11 मई को शाम 4:21 बजे से रात 7:03 बजे तक रहेगा। जो लोग व्रत रख रहे हैं, उनके लिए पारण सोमवार, 12 मई को सुबह 5:32 बजे के बाद होगा, क्योंकि चतुर्दशी तिथि सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाएगी।
नरसिंह जयंती पर पूजा विधि श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है। इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर को साफ करें और भगवान नरसिंह की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें फूल, फल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। भगवान नरसिंह को लाल रंग के फूल विशेष रूप से प्रिय हैं। इस दिन नरसिंह मंत्रों का जाप करना अत्यंत फलदायी माना जाता है, जैसे कि
“ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्॥”
सायंकाल का समय पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण होता है। इस समय भगवान नरसिंह का प्राकट्य हुआ था। सायंकाल में पुनः स्नान करके या हाथ-पैर धोकर पूजा स्थल पर बैठें। भगवान नरसिंह की आरती करें और उनकी कथाओं का पाठ करें, विशेष रूप से भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु की कथा। कुछ भक्त इस दिन उपवास भी रखते हैं और अगले दिन सूर्योदय के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं।
बुराई पर अच्छाई की विजय: भगवान नरसिंह का अवतार अत्याचारी राक्षस हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए हुआ था, जिसने धर्म का नाश करने का प्रयास किया था। नरसिंह जयंती बुराई पर अच्छाई की अंतिम विजय का प्रतीक है, जो भक्तों को यह विश्वास दिलाता है कि अंततः सत्य और धर्म की ही जीत होती है।
शक्ति और साहस का प्रतीक: भगवान नरसिंह शक्ति, साहस और पराक्रम के प्रतीक हैं। उनकी पूजा करने से भक्तों को भय से मुक्ति मिलती है और उनमें आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति का संचार होता है। यह दिन भक्तों को अन्याय के खिलाफ खड़े होने और धर्म की रक्षा करने की प्रेरणा देता है।
धार्मिक एकता: यह पर्व वैष्णव समुदाय के लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें भगवान नरसिंह की महिमा का गुणगान करने का अवसर प्रदान करता है। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में भक्त भाग लेते हैं।